राजस्थान में गुर्जरों को आरक्षण का जो सब्जबाग दिखाया गया था उसे पाने के लिए राजस्थान के गुर्जर फिर से आन्दोलन करने लगे हैं. इस आन्दोलन के फलस्वरूप गुर्जरों ने दिल्ली-मुंबई के बीच महत्वपूर्ण रेलमार्ग को रोक दिया है. यह रेलमार्ग दिल्ली को राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र को जोड़ने वाला सबसे महत्वपूर्ण रेलमार्ग है. आठ साल पहले भी गुर्जर ऐसा कर चुके हैं. बात सही और गलत की नहीं है. कोई भी समुदाय जब आरक्षण के लिए आन्दोलन करता है और इस आन्दोलन से कितना ही नुकसान क्यूँ न हो सरकारें उनके खिलाफ सख्त कदम नहीं उठती हैं. प्रशासन भी चुप्पी मार लेता है.
गुर्जरों की मांग यह नहीं है की उन्हें आरक्षण दिया जाये. उनकी मांग यह है की उन्हें पिछड़ी जाति से हटाकर अनुसूचित जाति की श्रेणी में डाल दिया जाये. इस मांग के पीछे कारण यह है की पिछड़ी जातियों में प्रतिस्पर्धा अधिक है और जनजातियो में आरक्षण मिलने की उम्मीद अधिक है, क्योंकि भारत में जो अनुसूचित जनजातियाँ हैं वे आरक्षण का पूरा लाभ नहीं ले पति हैं.
राजस्थान में मीणा समुदाय को अनुसूचित जनजाति का आरक्षण प्राप्त है और मीणा समुदाय ने इसका पूरा लाभ उठाया. इस समय भारत में मीणा समुदाय के लोग सरकारी नौकरियों में बहुतायत में हैं. गुर्जरों को लगता है की यदि उन्हें अनुसूचित जनजाति की सूची में डाल दिया जायेगा तो वो भी मीणा समुदाय की तरह सरकारी नौकरियां पाने लगेंगे.
जाट समुदाय के लोग भी आरक्षण रद्द होने से नाराज़ चल रहे हैं. वे भी किसी बड़े आन्दोलन की तैयारी कर रहे हैं.
पब्लिक पोलिटिकल पार्टी को छोड़कर अन्य सभी राजनीतिक पार्टियाँ आरक्षण का समर्थन करती हैं. सच्चाई तो यह है ऐसी समस्याएं इसलिए पैदा होती हैं क्यूंकि आरक्षण सामाजिक समरसता पाने का नहीं बल्कि प्रलोभन देकर वोट पाने का औजार बन गया है. पपोपा को छोड़कर अन्य सभी पार्टियाँ संगठित एवं ताकतवर समुदाय को वोट के बदले आरक्षण देने का वादा करती हैं या जाति संगठन वोट के बदले आरक्षण की मांग करते हैं.
पब्लिक पोलिटिकल पार्टी सभी जातियों द्वारा आरक्षण की मांग का स्वागत करती है. क्यूंकि जब एक-एक करके सभी जातियों को आरक्षण मिल जायेगा तो आरक्षण स्वयं ही समाप्त हो जायेगा. यही तो पपोपा का लक्ष्य है.
