सुप्रीम कोर्ट के दर से कार्यवाही करते हुए उत्तर प्रदेश की सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया की आरक्षण का लाभ लेकर प्रोन्नति पाने वाले १५२२६ एससी एसटी कर्मचारी पदावनत कर दिए गए हैं. प्रोन्नति में आरक्षण रद्द करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का पूरी तरह पालन हो गया है ऐसे में कोर्ट प्रदेश सरकार के खिलाफ लंबित अवमानना कारवाही निपटा दे.
सुप्रीम कोर्ट ने अप्रैल २०१२ में उत्तर प्रदेश में एसटी एससी कर्मचारिओं को प्रोन्नति में आरक्षण देने का कानून रद्द कर दिया था. आदेश के मुताबिक जिन कर्मचारिओं को आरक्षण का लाभ देकर प्रोन्नत किया गया था उन्हें पदावनत किया जाना था. जब ऐसा नहीं हुआ तो सामान्य वर्ग के कर्मचारिओं ने प्रदेश सरकार के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अवमानना याचिका दायर की. कोर्ट के आदेश के ३ वर्ष के बाद भी अनुपालन न होने पर सुप्रीम कोर्ट ने प्रदेश सरकार को कड़ी फटकार लगते हुए मुख्य सचिव को हलफनामा दाखिल कर पदावनत कर्मचारिओं का पूरा ब्यौरा देने को कहा था. मुख्य सचिव ने वकील रवि प्रकाश मेहरोत्रा के जरिये हलफनामा दाखिल कर १५ नवम्बर १९९७ से २८ अप्रैल के बीच आरक्षण का लाभ पाकर प्रोन्नत हुए एससी एसटी कर्मचारिओं का पूरा ब्यौरा प्रस्तुत किया. मुख्य सचिव ने बताया की कुल २०८०७ एससी एसटी कर्मचारी प्रोन्नत हुए थे. इनमे से १५२२६ कर्मचारी पदावनत कर दिए गए हैं और बाकि ५५८१ कर्मचारी या तो सेवानिर्वित हो चुके हैं, या फिर उनकी मौत हो चुकी है या बर्खास्त है.
पब्लिक पोलिटिकल पार्टी (पपोपा) उत्तर प्रदेश सरकार के हलफनामे को झूठा मानती है. क्यूंकि पदावनत किये गए १५२२६ कर्मचारिओं ने कोई भी सार्वजनिक विरोध नहीं किया. यह माना जा सकता है की कोर्ट के आदेश का विरोध नहीं किया जाना चाहिए पर जरा उत्तर प्रदेश के शिक्षा मित्रों को याद करें जिनको कोर्ट ने बर्खास्त किया था. उन्होंने पूरी तरह से सार्वजनिक विरोध किया था और सरकार ने भी उन्हें झूठे सच्चे आश्वासन दिए थे.
सुप्रीम कोर्ट को को उत्तर प्रदेश सरकार से यह भी पूछना चाहिए की पदावनत कर्मचारिओं के पदों पर किन कर्मचारिओं की नियुक्ति की गयी है. कही वे उस जाति विशेष के कर्मचारी तो नहीं हैं जिन्हें समाजवादी पार्टी की सरकार हर पद पर नियुक्त करना चाहती है. प्रत्येक कर्मचारी का नियुक्ति पत्र भी माँगा जाना चाहिए.
