भाजपा एवं उसके सहयोगी पार्टियों ने अपना राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार उतार दिया है. रामनाथ कोविंद की कई और भी विशेषताएं एवं पहचान हो सकती थी पर भाजपा उनकी केवल एक ही पहचान बताना चाहती है की वो दलित हैं. कांग्रेस एवं उसकी सहयोगी पार्टियों ने भी अपना उम्मीदवार उतार दिया है. मीरा कुमार की और भी कई विशेषताएं एवं पहचान हो सकती हैं पर उनकी भी केवल एक ही पहचान बताई जा रही है की वे भी दलित हैं. अब यह निश्चित हो गया है की जीते कोई भी, दलित ही इस देश का नया राष्ट्रपति बनेगा.
उत्तर प्रदेश एवं बिहार दोनों ऐसे राज्य हैं जहाँ जाति जाती नहीं है. रामनाथ और मीरा दोनों की जन्म एवं कर्म भूमि उत्तर प्रदेश एवं बिहार ही हैं. उत्तर प्रदेश एवं बिहार की आबोहवा में जाति की भूमिका इतनी महत्वपूर्ण है की जाति की पहचान ही सर्वोच्च राखी जाति है.
रामनाथ कोविंद एक अच्छे वकील थे, सिविल सर्विसेज में चयनित हो चुके थे, मोरारजी देसाई के निजी सचिव रह चुके थे. किन्तु इन सभी विशेषताओं को दरकिनारा करके उनकी सिर्फ एक ही विशेषता बताई जा रही है की वे दलित हैं. ऐसे ही मीरा कुमार एक विदुषी महिला हैं, भारतीय विदेश सेवा की सदस्य रह चुकी हैं, लोकसभा की अध्यक्ष रह चुकी हैं. किन्तु ये सभी बातें नगण्य है, महत्वपूर्ण है तो सिर्फ ये की वे दलित हैं.
भारत का राष्ट्रपति केवल प्रतीक स्वरुप राष्ट्र प्रमुख होता है. इसके बावजूद वह देश का प्रथम नागरिक है. जब देश के प्रथम नागरिक का चुनाव ही जाति के आधार पर होने लगे तो इस देश में रहने की लिए जाति का होना अनिवार्य हो जाता है.
सवर्णों की पार्टी होने का मुगालता पालने वाले भाजपा के समर्थक अब सोचने लगे हैं की दलितों का समर्थन करने में भाजपा अब बसपा को भी मात देने लगी है. कल तक जो भाजपा ब्रह्मणों एवं बनियों की पार्टी होने का दिखावा करती थी अब उसकी कलाई खुल गई है. भाजपा अब अपनी पहचान दलित समर्थक पार्टी के रूप में बनाने में कगी हुई है.
अचानक ही भाजपा के लोह्पुरुष सवर्ण जाति के लालकृष्ण अडवाणी को किनारे करते हुए एक गुमनाम दलित कोविंद को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाना क्यूँ जरूरी हो जाता है. यदि कोविन्दजी इतने योग्य हैं जितना भाजपा बता रही है तो उन्हें राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार क्यूँ बनाया जा रहा है. उन्हें प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार क्यूँ नहीं बनाया जाता. सच्चाई तो सिर्फ यह है की अडवाणीजी दलित नहीं हैं.
शायद निम्न पंक्तियाँ अडवाणी जी का दर्द बता सकती हैं:
मशहूर हुए वो जो कभी काबिल न थे,
मंजिल उन्हें मिली जो दौड़ में शामिल न थे…
