लोकतंत्र और अहमद पटेल की जीत ; मीडिया और अमित शाह की हार
अमित शाह और तथाकथित निष्पक्ष मीडिया अहमद पटेल और लोकतंत्र को हराने में लगे थे. पर लोकतंत्र की जीत जरूरी थी. साम – दाम – दंड – भेद चारो हथियारों का उपयोग अमित शाह ने किया पर सफल नहीं हो पाए.
साम अर्थात समझाना:
अमित शाह ने मीडिया द्वारा यह समझाने की कोशिश की अहमद पटेल अब हार जायेंगे. अतः हारने वाले को वोट देकर विधायक अपना वोट बर्बाद नहीं करे.
दाम अर्थात खरीदना:
कांग्रेस का यह आरोप निर्मूल नहीं लगता की भाजपा ने कांग्रेस के विधायकों को 15 करोड़ में खरीदने का प्रयास किया था.
दंड अर्थात डराना:
यह संजोग नहीं हो सकता की आयकर का छापा कर्णाटक के मेजबान मंत्री पर उसी दिन पड़े जब गुजरात के कांग्रेस विधायक उनके महमें हों.
भेद अर्थात तोडना:
अमित शाह ने शंकर सिंह बाघेला के साथ 6 विधायको को तोडा, 44 कांग्रेस विधायकों में से 2 को क्रास वोटिंग के लिए कहा, जिनका वोट निरस्त हो गया.
गुजरात विधानसभा चुनाव की एक सीट के लिए बीजेपी और कांग्रेस के बीच जो टक्कर देखने को मिली और जिस तरह से अंतिम समय तक सस्पेंस का माहौल बना रहा उसने कांटे की टक्कर वाले क्रिकेट मैचों के रोमांच को भी पीछे छोड़ दिया. हालांकि अपनी जिंदगी के सबसे कठिन चुनाव में जिस तरह अहमद पटेल ने जीत हासिल की, उसने बीजेपी खासकर अध्यक्ष अमित शाह की चाणक्य नीति को बड़ा झटका दिया है.गुजरात में राज्यसभा चुनाव की तीन सीटों के लिए चुनाव होने थे. विधानसभामें जो संख्या बल है उसके हिसाब से दो सीटें बीजेपी तो एक सीट कांग्रेस के खाते में जानी तय थी. बीजेपी ने इन दो सीटों पर अमित शाह और स्मृति ईरानी कोउम्मीदवार बनाया और कांग्रेस की ओर से सोनिया गांधी के राजनीतिक सचिव और गांधी परिवार के बाद पार्टी के सबसे कद्दावर चेहरे अहमद पटेल को उतारा गया. इन प्रत्याशियों की जीत तय मानी जा रही थी लेकिन गेम तब बदला जब शंकर सिंह वाघेला ने कांग्रेस छोड़ दी. इसके बाद पार्टी के छह विधायक बागी होकर बीजेपी में चले गए. कांग्रेस ने संकट भांप लिया कि ये अहमद पटेल को दोबारा राज्यसभा न जाने देने की साजिश है वो आनन फानन में अपने 44 विधायकों को लेकर कर्नाटक चली गई.मामले में दिलचस्प मोड़ तब आया जब कर्नाटक के जिस रिसॉर्ट में ये विधायक रुके हुए थे, उसपर आयकर विभाग ने छापा मार दिया. इस छापे की गूंज संसद तक में सुनाई दी. कांग्रेस ने आरोप लगाया कि बीजेपी अहमद पटेल को हराने के लिए हर दांव चल रही है. पहले उसके विधायकों को खरीदा गया और अब आयकरछापों से उन्हें डराने की कोशिशकी जा रही है. यही नहीं कर्नाटक में कांग्रेस के केवल 44 विधायक पहुंचे यानी पार्टी के 7 और विधायक बागी हो गए. कांग्रेस को जीत के लिए अब भी एक और विधायक की दरकार थी क्योंकि जीत काआंकड़ा 45 विधायकों का था. हालांकि दोबागी कांग्रेसियों के वोट रद्द होने से अहमद पटेल की जीत के लिए 44 वोट ही पर्याप्त थे.JDU-NCP विधायक बने गेम चेंजरइन सबके बीच एक और बड़ी उठापटक बिहार में भी हुई. वहां महागठबंधन टूट गया और नीतीश कुमार लालू यादव का साथ छोड़कर बीजेपी के साथी बन गए. बीजेपी को इसका फायदा गुजरात में भी दिखा क्योंकि गुजरात में जेडीयू से भी एक विधायक छोटू बसावा हैं. बीजेपी आश्वस्त थी कि छोटू बसावा का वोट उसे ही मिलेगा. पार्टी ने भी उसे आश्वस्त किया था लेकिन छोटू बसावा ने कहा कि उन्होंने अहमद पटेल को वोट दिया है.यही नहीं, गुजरात की विधानसभा में एनसीपी के भी दो वोट हैं. बीजेपी और कांग्रेस दोनों की ही इन वोटों पर नजरथी. दोनों में से जिसके खाते में ये वोट जाते उसकी जीत तकरीबन तय थी लेकिनएनसीपी के दोनों विधायकों ने अलग-अलगपार्टियों को वोट दिया. यानी एनसीपी का एक वोट कांग्रेस को और दूसरा वोट बीजेपी को मिला. यानी यहां बीजेपी एनसीपी को दोनों वोट पाने में विफल रही और अहमद पटेल की जीत तय हो गई.गुजरात में महज बीजेपी-कांग्रेस नहीं था मुकाबलागुजरात के इन राज्यसभा चुनाव में बीजेपी ने जो बिसात बिछाई उससे साफ होगया था कि ये मुकाबला महज दो पार्टियों का मुकाबला नहीं होने जा रहा बल्कि इसके पीछे बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और कांग्रेस नेता अहमद पटेल की व्यक्तिगत अदावत भी है. पिछले कुछ दिनों के घटनाक्रम को देखा जाए तो ये साफ है किअहमद पटेल को हराने के लिएबीजेपी ने हर संभव कोशिश की. यहां तक कि अंतिम समय में जब मामला चुनाव आयोगपहुंचा तो बीजेपी ने अपने छह-छह केंद्रीय मंत्री आयोग भेज दिए. वो भी एक बार नहीं बल्कि तीन घंटे में तीन बार. लेकिन इसके बावजूद फैसला पटेल केपक्ष में गया और अमित शाह को अपने हाल के दिनों की सबसे बड़ी सियासी शिकस्त अपने सबसे बड़े राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी से खानी पड़ी.
प्रिय भारतवासियो
अमित शाह अथवा अहमद पटेल, भाजपा अथवा कांग्रेस किसी से मेरा व्यक्तिगत राग द्वेष नहीं है. किन्तु लोकतंत्र की जीत जिस प्रकार हुई है इससे मेरा विश्वास चुनाव आयोग एवं लोकतंत्र पर बढ़ गया है.
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लोकेश शीतांशु श्रीवास्तव- राष्ट्रीय अध्यक्ष: पब्लिक पोलिटिकल पार्टी
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