गरीबों की बातें अमीरों का काम करना मोदी सरकार की प्रथम प्राथमिकता है. ये बात पिछले एक साल के आर्थिक आकडे चीख-चीख कर कह रहे हैं. पिछले एक साल में 100 अमीरों की 31 लाख करोड़ रुपये की बढ़ी दौलत पर ना तो नोटबंदी का असर पढ़ा है और न ही जी एस टी का. आधी आवादी की आमदनी के लगातार घटने के बावजूद 6740 लोगों की माली हालत सवा दो आरब डॉलर से अधिक बढ़ना एक सामजिक चुनौती है.
मोदी सरकार ने 2015 में 1.55 लाख एवं 2016 में 2.13 लाख नए रोज़गार सृजित हुए. यह संख्या पिछले 8 वर्षों में न्यूनतम है. सुचना प्रोद्योगिकी एवं रियल एस्टेट में रोज़गार लगभग बंद से हो गए हैं. एक तो करेला ऊपर से नीम चढ़ा ये की बेरोजगारों को जुमलो में प्रधानमंत्री ये बोलता है बेरोजगारों को रोज़गार देने वाला बनना चाहिए. उन्हें नौकरी मांगने की जगह नौकरी देने वाला बनना चाहिए. जमीनी सच्चाई तो ये है की नौकरी देने वाले नौकरी मांगने वाले बनते जा रहे हैं. आने वाले लोकसभा चुनावों में बेरोजगारों की ये फौज भाजपा सरकार को बेरोजगार कर देगी.
