सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच प्रमोशन में एस टी एस सी समुदाय के लोगों को आरक्षण दें पर विचार करेगी. एक दशक पहले सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया था की प्रमोशन में एस सी एस टी समुदाय को आरक्षण देना राज्य सरकारों के लिए अनिवार्य नहीं है. तब कोर्ट ने कहा था की सरकारी सेवावों में इन समुदावों का प्रतिनिधित्व कम होने और इनके पिछड़े होने की बात साबित होने वाले आकडे मौजूद होने पर ही प्रमोशन में रिजर्वेशन देने का कदम राज्य सरकारें उठा सकती हैं.
जस्टिस कुरियन जोसेफ की अध्यक्षता वाली 2 जजों की बेंच ने यह मुद्दा मंगलवार 14 नवम्बर को पांच जजों की बेंच के हवाले किया. इस अनुरोध पर देश के मुख्य न्यायधीश जस्टिस दीपक मिश्र ने बुधवार को तीन जजों की बेंच बनाई, जिसने शुरूआती सुनवाई के बाद पांच जजों की बेंच के पास यह मसला भेज दिया 2006 में दिए गए जजमेंट पर दुबारा गौर करने की जरुरत है या नहीं.
एसटी / एससी प्रमोशन में रिजर्वेशन पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए पब्लिक पोलिटिकल पार्टी के राष्ट्रिय अध्यक्ष श्री लोकेश शीतांशु श्रीवास्तव ने कहा की जब 2006 के एम्. नागराज के केस में साफ कहा गया था की प्रमोशन में आरक्षण देते वक़्त भी क्रीमी लियर जैसी दूसरी बातों का ध्यान रखा जायेगा और ऐसे आकड़ो पर भी गौर किया जायेगा जिससे साबित होता हो की सम्बन्धित राज्य में एस सी, एस टी पिछड़े हैं और सरकारी सेवाओ में उनका प्रतिनिधित्व पर्याप्त नहीं है, यह दर्शाता है की आरक्षण की सीमा तोड़ने की शाजिश लगातार चल रही है. यह सवर्णों की निष्क्रियता भी दर्शाती है. अब सवर्णों को जाग जाना चाहिए और अपने लिए 51% सवर्ण आरक्षण की बात मांग लगातार करते रहनी चाहिए.
