नई दिल्ली | 17 नवम्बर | मोदी सरकार ब्राह्मण, क्षत्रिय, कायस्थ एवं वैश्य अधिकारीयों पर कारवाही करने जा रही है जिन्होंने फर्जी तरीके से जाति प्रमाणपत्र बनवाकर नौकरी पाई. डिपार्टमेंट ऑफ़ पेरसोंनेल एंड ट्रेनिंग ने फर्जी जाति प्रमाणपत्र पर नौकरी पाए कर्मचारियों पर अपना अभियान तेज कर दिया है. अब तक लगभग 3000 नौकरिया जाँच के घेरे में आ चुके हैं. स्वाभाविक है की मोदी सरकार का यह अभियान सवर्ण विरोधी है. तर्क दिया जा रहा है फर्जी प्रमाणपत्र तो फर्जी ही है. यदि किसी सवर्ण अधिकारी का जाति प्रमाणपत्र उसके सेवानिवृत होने के एक दिन पहले भी फर्जी पाया जाता है तो उसको नौकरी से बर्खास्त कर दिया जाता है और उसकी पेंशन एवं एनी लोभों पर रोक लग जाती है.
पब्लिक पोलिटिकल पार्टी के संस्थापक एवं राष्ट्रिय अध्यक्ष श्री लोकेश शीतांशु श्रीवास्तव ने इस निति का विरोध करते हुए कुछ प्रश्न उठाये हैं:
- क्या संवेधानिक पदों जैसे राष्ट्रपति, उप राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, सांसद, विधायक आदि के जाति प्रमाणपत्र, आय प्रमाणपत्र, निवास प्रमाण पत्र, शिक्षा डिग्री एवं अनुभव पत्रों की जाँच होती है?
- अगर होती है जो कौन सी संस्था ऐसा करती है?
- अगर अभी तक ऐसी कोई संस्था नहीं है तो क्यूँ नहीं है. क्यूँ न ऐसी कोई संस्था बनाकर उसे संवेधानिक मान्यता प्रदान कर दी जाये?
- क्या ऐसी संस्था प्रधानमंत्री की डिग्री की जाँच करेगी और उसके फर्जी पाए जाने पर प्रधानमंत्री को बर्खास्त करेगी और उसकी पेंशन एवं अन्य प्राप्त लाभों पर रोक लगाएगी?
सारे विचार करने योग्य प्रश्न है. कोई भी सरकार ऐसी कोई संस्था नहीं बनाएगी. क्यूंकि छोटी मछली तो जाल में फास जाएगी पर बड़ी मछली जाल लेकर भाग जाएगी.
