धर्म और जाति से परे सभी किसानो को अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) में शामिल करने की एक जनहित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने मोदी सरकार एवं राष्ट्रिय पिछड़ा वर्ग आयोग से उनका रुख पूछा है.
यह याचिका गुजरात के राजेश पटेल ने दायर की है. याचिका में उन्होंने केंद्र सरकार और राज्य सरकार के 13 सितम्बर के ज्ञापन को चुनौती दी है. इस ज्ञापन में और अधिक ओबीसी को पिछड़ा वर्ग का लाभ देने के लिए आय के स्टार को 6 लाख रुपये वार्षिक से बढाकर 8 लाख रुपये कर दिया गया है.
याचिका में कहा गया है की केंद्र और राज्य सरकार का यह कदम बिना किसी आधार और संख्यात्मक दाता के है. इस सम्बन्ध में केंद्र एवं राज्य सरकार ने कोई अध्धयन नहीं किया है. गुजरात सरकार ने बिना किसी हिचक के केंद्र के कार्यालय ज्ञापन को अपना लिया है.
याचिकाकर्ता ने कहा की जो किसान क्रीमी लेयर में नहीं आते उन्हें व्यावसायिक समूह के समान संवेधानिक अधिकार देकर ओ बी सी में शामिल किया जाये, ताकि उनके स्टार को ऊँचा उठाया जाये.
राजेश पटेल के वकील राजेश इनामदार ने कहा की इंदिरा सहनी बनाम भारत सरकार मामले में स्पष्ट रूप से कहा गया की पिछड़े वर्ग का लाभ तभी विस्तृत किया जा सकता है, जब लक्षित समूह के पिछड़ेपन का संख्यात्मक आकड़ा मौजूद हो. विवादित कार्यालय आदेश और ज्ञापन सिरे से अवैध और मनमाने हैं. यह ज्ञापन विशुद्ध रूप से राजनीतिक कारणों से जारी किया गया है, जिसमे सर्वोच्च न्यायालय द्वारा तमाम फैसलों में तय किये गए कानूनों का उल्लंघन किया गया है.
याचिकाकर्ता ने कहा की इस ज्ञापन को तुरंत रद्द किया जाये. सरकार को निर्देश दिया जाये की वह पिछड़ा वर्ग का लाभ ले रहे लोगों के विकास और प्रगरी का सर्वे तथा समीक्षा करे, जिससे उन्हें इस समूह में शामिल करने अथवा बहार निकालने का सोचा जा सके. साथ ही पिछड़ा वर्ग की पहचान करने के तरीके का भी अध्यन किया जाये.
याचिका में यह भी कहा गया की सरकार से कहा जाये की वह आय सीमा का निर्धारण करे ताकि भविष्य में किसानो को दिए जाने वाले लाभ की कवायद बेहतर तरीके से की जा सके.
