मोदी सरकार में केन्द्रीय मंत्री श्री रामदास आठवले 28 दिसंबर को जाटव समाज के एक कार्यक्रम में धर्मसंकट में फंस गए जब उनके भाषण के दौरान एक यूवक ने उनसे सवाल पूंछा की ‘भाजपा नेता लगातार डॉ बी आर आंबेडकर एवं संविधान को लेकर विवादित बयां दे रहे हैं, ऐसे में आपने (आठवले) ने उंनका विरोध क्यूँ नहीं किया?’
इस प्रश्न के जवाब में आठवले धर्म संकट में फंस गए और कार्यक्रम बीच में ही छोड़कर चले गए.
वास्तव में भाजपा ने सरकारें बनाने के लिए जबसे अन्य पार्टियों के सभी ‘लुटे, छूटे, टूटे, रूठे’ का साथ पकड़ना शुरू किया है उन सभी का यही हाल है. सत्ता पाने के लिए सभी भाजपा से जुड़ तो गए हैं पर उनकी आत्मा खुद उनका साथ नहीं दे रही है. जिन सिद्धांतो पर चलकर उन्होंने राजनीति में कदम रखा और यहाँ तक आये वे भाजपा के साथ आने पर टूटते हुए दिखाई दे रहे हैं. शायद रामदास आठवले का धर्मसंकट यही है.
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