सवर्ण विरोधी मोदी सरकार ने सवर्णों (ब्राह्मण+क्षत्रिय+कायस्थ+वैश्य) की तरक्की रोकने की शाजिश की थी, यह बात आश्चर्यजनक किन्तु सत्य है.
मोदी सरकार बासवान समिति की सिफारिशों को लागु करते हुए सिविल सेवा के सामान्य वर्ग (सवर्ण) प्रत्याशियों की अधिकतम आयु सीमा 32 वर्ष से घटाकर 26 वर्ष करने वाली थी. लेकिन सवर्णों के विरोध को देखते हुए इसे ख़ारिज कर दिया गया. मोदी सरकार के केन्द्रीय कार्मिक राज्य मंत्री डॉ जीतेन्द्र प्रसाद ने स्पष्टीकरण दिया की मोदी सरकार ऐसा नहीं करेगी.
भारत में सिविल सेवा परीक्षा में हर साल लगभग 12 लाख उम्मीदवार प्रारंभिक परीक्षा में बैठते हैं. मुख्य परीक्षा में लगभग 40 – 45 हजार उम्मीदवार पहुचते हैं जबकि साक्षात्कार के बाद लगभग 1 हज़ार उम्मीदवारों का चयन किया जाता है.
सिविल सेवा में बैठने की न्यूनतम आयु 21 वर्ष है, जबकि सामान्य वर्ग (सवर्णों) के लिए अधिकतम आयु 32 वर्ष, ओबीसी के लिए 35 वर्ष, एससी, एसटी के लिए 37 वर्ष, तथा दिव्यांगो के लिए 42 वर्ष है. इसपर भी शर्त यह है की सामान्य वर्ग (सवर्ण) को केवल 6 मौके मिलेंगे. ओबीसी को अधिकतम 9 मौके और एससी, एसटी को असीमित मौके मिलेंगे.
मोदी सरकार चाहती है की सवर्ण कलेक्टर, एसपी न बने इसलिए सिविल सर्विस में 11 वर्ष (21 वर्ष से 32 वर्ष) की प्रवेश आयु को घटाकर 5 वर्ष (21 वर्ष से 26 वर्ष कर देना चाहती थी)
पब्लिक पोलिटिकल पार्टी मोदी सरकार की इस योजना का विरोध करती है.
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