मैं दुनिया की भीड़ में खोना नहीं चाहता,

कहीं मेरा नाम.

उन नामों में न खो जाये,

जो सिर्फ भीड़ बढ़ाते हैं.

 

यदि,

कभी ऐसी मजबूरियां आ जायें,

की मैं शीर्षक न बन सकूँ,

तब भी मैं अपना नाम,

उन नामों के साथ नहीं जोड़ना चाहूँगा.

 

स्वतंत्र आस्तित्व की जिजीविषा,

मुझे अपना नाम

हाशिये पर लिखने को मजबूर कर देगी.

 

और यदि हाशिया भी न मिला, तो

हो सकता है की मैं पृष्ठ पलट दूं,

और अपने नाम का शीर्षक लिख,

नवसृजन प्रारंभ करूँ…

(लोकेश शीतांशु श्रीवास्तव द्वारा रचित कविता)

Leave a comment