आँखें छीन लेने के बाद चश्मे बाँटना,

भाजपा की आदत है,

लूट लो एक बार में,

फिर दो थोडा-थोडा, मोदी सारकार की शरारत है,,

 

गृह युद्ध चल रहा है देश में,

पर युद्ध का नाम नहीं है,

नौकरियां छीन ली,

रोज़गार नहीं है, काम नहीं है,,

 

पुलिस लड़ती है वकीलों से,

कौन करता किसकी हिफाजत है,

आँखें छीन लेने के बाद चश्मे बाँटना,

भाजपा की आदत है,,

 

इन्सान होने का सबूत दो,

गजब की पहरेदारी है,

हो गयी थी भूल, दब गया था फूल,

जनता की लाचारी है,,

 

जनता की बात कौन करे,

मीडिया तो तवायफ है,

आँखें छीन लेने के बाद चश्मे बाँटना,

भाजपा की आदत है,,

 

ट्रेडमिल पर आजकल,

भाजपा सरकारें दौड़ रही हैं,

एक अकड़ है आकड़ो की,

बस आकड़े छोड़ रही है,,

 

जबरा मारे और रोने भी न दे,

हर भारतीय की आयी शामत है,

आँखें छीन लेने के बाद चश्मे बाँटना,

भाजपा की आदत है,,

(लोकेश शीतांशु श्रीवास्तव द्वारा रचित कविता)

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