आजकल मुफ्त उपहार बनाम रेवड़ी कल्चर की खूब चर्चा है और इस पर सुप्रीम कोर्ट भी सरगर्म है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मुफ्त उपहार (रेवड़ियां) व कल्याणकारी योजनाओं योजनाएं अलग-अलग चीजें हैं। कोर्ट ने कहा कि कल्याणकारी उपायों और अर्थव्यवस्था को होने वाले नुकसान के बीच संतुलन बनाया जाना चाहिए। मुफ्त उपहारों के बजाय इसे बुनियादी ढांचे के विकास पर खर्च किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान इस संभावना को भी खारिज कर दिया कि वह मुफ्त उपहारों का वादा करने वाली पार्टियों की मान्यता खत्म करने वाली याचिका पर विचार करेगा। मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एंड वी रमन और जस्टिस कृष्ण मुरारी की पीठ ने इस बारे में सभी पक्षकारों से 17 अगस्त तक सुझाव मांगे कोर्ट ने कहा यह गंभीर विषय है। जिन्हें मुफ्त उपहार मिल रहे हैं वह इसे जारी रखना चाहते हैं। हम एक कल्याणकारी राज्य हैं। कुछ लोग कह सकते हैं वह कल झुकाते हैं और इस पैसे को विकास की प्रक्रिया में खर्च होना चाहिए इसलिए दोनों पक्षों को सुना जाना चाहिए पीठ वकील अश्वनी उपाध्याय की जनहित याचिका पर विचार कर रही थी। इसमें ऐसी घोषणा करने वाले दलों का पंजीकरण रद्द करने की मांग की गई है।
प्रधान न्यायाधीश एन वी रमण और न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि तर्कहीन मुफ्त उपहार निश्चित रूप से चिंता का विषय है और वित्तीय अनुशासन होना चाहिए। हालांकि उन्होंने बताया कि भारत जैसे देश में, जहां गरीबी एक मुद्दा है, गरीबी को कैसे नजरअंदाज किया जा सकता है। केंद्र का प्रतिनिधित्व करने वाले सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा: ‘हम एक समिति का प्रस्ताव कर रहे हैं, जिसमें सचिव, केंद्र सरकार, प्रत्येक राज्य सरकार के सचिव, प्रत्येक राजनीतिक दल के प्रतिनिधि, नीति आयोग के प्रतिनिधि, आरबीआई, वित्त आयोग, राष्ट्रीय करदाता संघ और अन्य शामिल हैं।’ उन्होंने कहा कि जब तक विधायिका कदम नहीं उठाती, तब तक अदालत कुछ तय कर सकती है। एक वकील ने तर्क दिया कि अधिकांश मुफ्त उपहार घोषणापत्र का हिस्सा नहीं हैं, लेकिन रैलियों और भाषणों के दौरान घोषित किए जाते हैं। पीठ ने कहा कि यह एक गंभीर मुद्दा है और कहा कि जो लोग मुफ्त उपहार का विरोध कर रहे हैं, उन्हें यह कहने का अधिकार है, क्योंकि वे कर का भुगतान कर रहे हैं और उम्मीद करते हैं कि राशि को बुनियादी ढांचे आदि के निर्माण पर खर्च किया जाना चाहिए, न कि पैसे बांटने में। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि विशेषज्ञ पैनल इस पर गौर कर सकता है, और यह कानून बनाने में शामिल नहीं हो सकता।
प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि सवाल यह है कि अदालत किस हद तक हस्तक्षेप कर सकती है या इस मामले में जा सकती है? उन्होंने दोहराया कि यह एक गंभीर मुद्दा है और लोगों के कल्याण के लिए केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा शुरू की गई विभिन्न योजनाओं की ओर इशारा किया। मेहता ने कहा कि मुफ्त उपहार कल्याणकारी नहीं हो सकते और लोगों को कल्याण प्रदान करने के अन्य वैज्ञानिक तरीके भी हैं। उन्होंने कहा कि अब चुनाव केवल मुफ्तखोरी के आधार पर लड़े जाते हैं। मेहता ने कहा, अगर मुफ्त उपहारों को लोगों के कल्याण के लिए माना जाता है, तो यह एक आपदा की ओर ले जाएगा। याचिकाकर्ता ने दावा किया कि आरबीआई के आंकड़ों से पता चलता है कि 31 मार्च, 2021 तक राज्यों की कुल बकाया देनदारी 59,89,360 करोड़ रुपये है। याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह ने वित्तीय अनुशासन पर जोर दिया और कहा, ‘यह पैसा कहां से आएगा? हम करदाता हैं।’ पीठ ने कहा कि वित्तीय अनुशासन होना चाहिए और अर्थव्यवस्था को पैसा गंवाना और लोगों का कल्याण, दोनों को संतुलित करना होगा। न्यायाधीश ने कहा कि वह कानून के लिए बने क्षेत्रों पर अतिक्रमण नहीं करना चाहते हैं। आम आदमी पार्टी का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि मुफ्त और कल्याण के बीच भ्रम है, मुफ्त शब्द का इस्तेमाल बहुत गलत तरीके से किया जाता है। दलीलें सुनने के बाद शीर्ष अदालत ने मामले को आगे की सुनवाई के लिए 17 अगस्त निर्धारित किया है। मुफ़्त उपहार बनाम रेवड़ी कल्चर पर पब्लिक पॉलीटिकल पार्टी सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों और फ़ैसले का स्वागत करती है।

#PPP

#PublicPoliticalParty

#LokeshShitanshuShrivastava

#DeepmalaSrivastva

#Economic

#SupremeCourt

#BenchAdvocateAshwini

#FinanceCommission

#RBI

#CentralGoverment

#StateGovernment

Leave a comment