मानव जीवन बड़ा महत्वपूर्ण है लेकिन सोचो कि जब कोई व्यक्ति इस जीवन को स्वयं समाप्त करने का निर्णय लेता होगा तो उस पर क्या गुजरती होगी इसका अनुमान लगाना भी कठिन है। जीने के जब सब रास्ते बंद हो जाएं तो कोई व्यक्ति आत्महत्या करता है और उसका यह क़दम किसी भी जीवित समाज या सत्तारूढ़ सरकार के लिए शर्म से डूब मरने योग्य है। यदि हम अपने देश की बात करें तो
भारत में वर्ष 2021 में 1,64,0 33 लोगों ने आत्महत्या की,जिसमें से हर चौथा व्यक्ति दिहाड़ी मजदूर था। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो एनसीआरबी की ताज़ा रिपोर्ट के मुताबिक, पैसे या कैरियर से संबंधित समस्याएं अलगाव की भावना, दुरव्यवहार, हिंसा, पारिवारिक समस्या मानसिक विकार, शराब की लत और वित्तीय नुकसान देश में आत्महत्या की घटनाओं के मुख्य कारण हैं। एनसीआरबी रिपोर्ट के मुताबिक पेशेवर लोगों में आत्महत्या करने वालों में बड़ी संख्या दिहाड़ी मजदूरों की है। कुल 42,00 4 दिहाड़ी मजदूरों ने आत्महत्या की। यह आंकड़ा जान देने वालों का 25.6 प्रतिशत है। एनसीआरबी ने आत्महत्या करने वालों की सूची उनके पैसे के हिसाब से तैयार की है और इन्हें नौ पेशवर समूह में बांटा गया है।
विधार्थी, पेशेवर/ वेतन भोगी, दिहाड़ी मजदूर सेवानिवृत् बेरोजगार, स्व रोज़गार गार करने वाले, ग्रहिणी, किसान और अन्य। वर्ष 2022 में भी दिहाड़ी मजदूरों ने ज़्यादा आत्महत्या की है। सवाल वही है कि आख़िर क्यों आदमी अपनी और अपने परिवारवालों की जीवन लीला समाप्त करने का कदम उठा रहा है। तो इस संबंध में अनेक समाज शास्त्रियों और पब्लिक पोलिटिकल पार्टी का कहना है कि इसके लिए जीवन यापन की दी जाने वाली नीतियां बहुत हद तक ज़िम्मेदार होती हैं। पब्लिक पॉलीटिकल पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष दीपमाला श्रीवास्तव ने कहा है कि
वर्तमान केंद्र सरकार की नीतियों से गरीबी बढ़ी है और चीजें महंगी हुई हैं और लोग आत्महत्या करने के लिए मजबूर हुए हैं। इस प्रकार की आत्महत्याओं के लिए पूर्ण रूप से केंद्र सरकार ज़िम्मेदार है।
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