बलात्कारियों को संस्कारी बता कर रिहा कर देने, सम्मान देने पर सत्ता, राजनीति और पूरा लोकतंत्र हुआ शर्मशार व कलंकित
गुजरात सरकार की एक समिति ने आज़ादी के अमृत महोत्सव का नाम और लाभ उठाते हुए ठीक 15 अगस्त को बिलकीस बानो के बलात्कारियों, जो आजीवन कारावास की सज़ा काट रहे थे को सज़ा से मुक्त कर दिया। मगर मामला चूंकि सरकार और एक विशेष दल की सहानुभूति और सहायता का था और राज्य से लेकर केंद्र सरकार तक इन बलात्कारियों के लिए हमदर्दी जुटाई गई और बलात्कारी की जगह संस्कारी शब्द का प्रयोग लाया गया, इसलिए सब अचंभित रह गए। एक मौन सन्नाटा सा छा गया। न तो कोई कैंडल मार्च निकला न धरना प्रदर्शन हुए। निर्भया मामले जैसा आक्रोश समाज में नज़र नहीं आया। और सत्ता के गलियारों और उनके समर्थकों में ख़ामोशी पसरी रही । और तो और 15 अगस्त को जब गुजरात की जेल से इन दोषी दुष्कर्मियों और हत्यारों को रिहा किया गया तो विहिप की एक इकाई ने गोधरा में पुष्पहारों से उनका स्वागत भी किया, जैसे कि वे कोई नायक हो । अपराधियों के चेहरों पर भी पछतावा की झलक नहीं थी। समीक्षा समिति का हिस्सा रहे एक भाजपा विधायक ने बलात्कारियों को संस्कारी ब्राह्मण कहकर उनकी सराहना और वन्दना की। सरकार ने इस पर कोई टिप्पणी नहीं की । किसी वरिष्ठ मंत्री या भाजपा प्रवक्ताओं ने प्रतिक्रिया नहीं दी। गुजरात के मुख्यमंत्री सहित राज्य के अन्य भाजपा नेताओं की तरफ से एक शब्द भी नहीं बोला गया कि बलात्कारी कैसे संस्कारी हो गए। राष्ट्रीय महिला आयोग सहित अन्य संगठनों की ओर से कोई बयान नहीं आया। ज़ाहिर है कि सरकारी संस्थाओं ने अपराधियों के अभिवादन वाले दृश्यों से आंखें फेर लीं। मुख्य राष्ट्रीय पार्टियों में से केवल कांग्रेस और वामदलों ने इस मामले में ज़रा आक्रोश जताया। लेकिन सब हाशिए पर ही सिमट कर रह गए। किसी ने जोर शोर से यह मामला नहीं उठाया कि
जब 2014 में बनाई गई एक नीति में स्पष्ट कहा गया है कि दुष्कर्म के अपराधियों को दोषमुक्त नहीं किया जा सकेगा। तो फ़िर बिलकीस बानो के बलात्कारियों को क्यों रिहा किया जा रहा है -? मीडिया ने भी बिल्कीस के मामले में अपनी कर्तव्य परायणता नहीं दिखाई। प्राइम टाइम डिबेट्स नहीं हुईं, अखबारों में संपादकीय नहीं लिखे गए। जस्टिस फाॅर बिल्कीस के स्लोगन वाले आंदोलन नहीं छेड़े गए। आम लोगों ने सड़कों पर उतरकर प्रदर्शन नहीं किया। सरकार की आंखों में आंखें डालकर नहीं पूछा गया कि आख़िर बलात्कारी कैसे संस्कारी हो गए -? क्यों छोड़ दिए गए। गुजरात के सांप्रदायिक दंगों के दौरान सामूहिक दुष्कर्म और हत्याकांड की वहशी घटना के दोषियों को संस्कारी ब्राह्मण बता कर रिहा कर देना एक शर्मनाक और घिनौना कृत्य हुआ है।
इससे यही पता चलता है कि एक विशेष वर्ग वाली कुत्सित सोच ने सत्ता के गलियारों से पद और कानून का दुरुपयोग तथा लोकतंत्र को शर्मशार ही किया है। नैतिकता की बलि दे दी गई है। आज तुष्टीकरण की राजनीति एक मुस्लिम महिला को न सिर्फ़ न्याय से वंचित कर रही है बल्कि बलात्कारियों के समर्थन और सहयोग में खड़ी दिखाई दे रही है। सत्ता के गलियारों से जब बलात्कारियों को संस्कारी बता कर दोषमुक्त किया जाएगा तो देश की राजनीति या न्याय पालिका ही नहीं पूरा लोकतंत्र शर्मशार और कलंकित हो जाएगा।
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