अपनी सत्ता प्राप्ति के शुरू से लेकर आज तक भारतीय जनता पार्टी राजनीति में ऐसा घिनौना
कुचक्र रच रही है कि लोकतंत्र में चुनीं हुईं सरकारें तक अपने आपको असुरक्षित और भयभीत महसूस कर रही हैं। निर्वाचित जनप्रतिनिधियों की ख़रीद-फरोख़्त और सत्ता पलट का डर भी इस कदर सरकारों को सताने लगा है कि वह अपने विधायकों को शक की नज़र से देखते हुए उनको एक स्थान से दूसरे स्थानों पर होटलों में इकट्ठा करने पर मजबूर होने लगे हैं। विधायकों की ख़रीद फ़रोख़्त के षड़यंत्र की ज़रा सी भी भनक मिलते ही मुख्यमंत्री या पार्टी प्रमुख अपने विधायकों को समेटकर किसी सुरक्षित स्थान पर चले जाना बेहतर समझते हैं। अभी फिलहाल झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने ऐसा ही किया हालांकि अब उन्हें भरोसा हो गया है कि उनके बाद भी उनकी पार्टी की सरकार को कोई ख़तरा नहीं है। और वे सदल बल वापस लौट आए हैं।
आपको ज्ञात है कि अभी कुछ दिनों पहले महाराष्ट्र की सरकार पलटी और उसके पहले इसी तरह विद्रोही विधायकों को गुजरात से आसाम होते हुए गोवा तक रखा गया। मध्य प्रदेश में सरकार पलटने से पहले विद्रोही गुट के विधायकों को इसी तरह हरियाणा में घेर कर रखा गया। राजस्थान में सचिन पायलट ने भी अपने समर्थक विधायकों को कई दिन तक प्रदेश से बाहर छिपाए रखा। दिल्ली सरकार ने विधानसभा में विश्वासमत पारित कर अपने को सुरक्षित और एकजुट साबित किया है। इस तरह राज्य सरकारों को तोड़ने, समाप्त करने की ये सब तुच्छ और घटिया हरकतें केन्द्र में मौजूद भारतीय जनता पार्टी और उनके गुर्गों की है। राजनीतिक विश्लेषक मान रहे हैं कि भाजपा ने आख़िर ये कैसा घिनौना खेल, खेल रखा है। जो भारतीय जनता पार्टी को अलोकतांत्रिक और संविधान विरोधी साबित कर रहा है।
लोकतंत्र में राजनीतिक दल सत्ता पाने के लिए चुनाव में उतरकर अपना फैसला जनता के हाथों पाते हैं। और जीत जाने के बाद शुरू होता है उनका लालच और स्वार्थ तथा उच्च पद यानि मंत्री बनने की चाहत। और इसी के चलते देखा गया है कि अनेक बार पदों के बंटवारे आदि को लेकर बहुमत प्राप्त दल में फूट भी पड़ जाती है और असंतुष्ट विधायक किसी और दल के साथ मिलकर अपना स्वार्थ साधने निकल पड़ते हैं पर उसके लिए भी नियम कायदे हैं लेकिन उनको बड़ी चालाकी से धतता बता दिया जाता है। और पिछले कुछ सालों में यह प्रवृत्ति तेज़ी से उभरी है कि सत्ता से चूक गया दल सत्ता पक्ष में फूट डालकर सरकार पलटने का प्रयास करता है इसके लिए अलग हुए विधायकों को बहुत रुपया और पद का प्रस्ताव और लालच दिया जाता है। कई राज्यों में इस तरह सरकारें पलट भी दी गईं हैं। भारतीय जनता पार्टी इसमें बहुत आगे बढ़ कर अपने षड़यंत्रकारी अभियान चलाती रही है और अब भी चला रही है। दिल्ली और झारखंड की सरकारों में विधायकों को तोड़ने और सत्ता के जाने का मामला साफ़ तौर पर नज़र आया है। यह हरक़त यानि दुष्टप्रवृत्ति अलोकतांत्रिक और घटिया है। यह अनैतिक और मतदाताओं के साथ धोखा है। इस प्रवृत्ति पर अंकुश तो लगना ही चाहिए बल्कि इसे पार्टी विरोधी गतिविधि में रखकर सख़्त सज़ा का प्रावधान किया जाना चाहिए।
राजनीतिक में व्याप्त भ्रष्टाचार की दास्तानें तो पहले भी होती थी लेकिन अब ये जो नया वायरस भारतीय राजनीति में भाजपा ने फैलाया है और इसके चलते अगर इसी तरह विधायकों की ख़रीद-फरोख़्त और चुनी हुई सरकारों को पलटने का सिलसिला चलता रहा तो यह भ्रष्टाचार और भारतीय राजनीति के पतन की चरम सीमा होगी। और देश तथा लोकतंत्र चरमरा कर दुनिया के सामने शर्मिंदा हो कर समाप्त ही हो जाएगा।
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