केंद्र सरकार ने शीर्ष न्यायालय को बताया है कि यूक्रेन से लौटे भारतीय मेडिकल छात्रों को भारतीय मेडिकल कॉलेजों में समायोजित नहीं किया जा सकता क्योंकि राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग अधिनियम में इसकी अनुमति देने का कोई प्रावधान नहीं है शीर्ष न्यायालय में दाखिल अपनी जवाबी हलफनामे में केंद्र ने कहा है कि इस तरह का की छूट देने से भारत में चिकित्सा शिक्षा के मानकों में बाधा आएगी केंद्र के हलफनामे के मद्देनजर न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की पीठ ने इस मामले की सुनवाई की है।
ज्ञात रहे कि इस वर्ष फरवरी मार्च में रूसी हमले के बाद यूक्रेन में अपने मेडिकल कोर्स को बीच में ही छोड़ने वाली है भारतीय छात्रों के लिए राहत की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर है इन्हीं याचिकाओं के संबंध में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के सचिव ने अदालत में हलफनामा दायर किया है केंद्र ने कहा है कि छात्र दो कारणों से विदेश गए थे एक नीट में खराब मेरिट और दूसरा पढ़ाई का ज्यादा खर्च रहना कर पाना भारत के प्रमुख मेडिकल कॉलेजों में खराब योग्यता वाले छात्रों को अनुमति देने से नई कानूनी लड़ाई शुरू हो सकती है वैसे भी यह भारतीय कालेजों की महंगी फीस का खर्च उठाने में सक्षम नहीं होंगे जवाबी हलफनामे में दलील दी गई है कि यूक्रेन से लौटे मेडिकल छात्रों को भारतीय कालेजों में दाखिले देने से वे उम्मीदवार भी कानूनी लड़ाई शुरू कर सकते हैं जिन्हें ऊंची मेरिट के बावजूद प्रवेश नहीं मिल पाए थे।
पब्लिक पॉलीटिकल पार्टी ने पहले भी इन मेडिकल छात्रों के लिए आवाज उठाते हुए कहा था कि इनको मेडिकल की शिक्षा पूरी कराने की जिम्मेदारी भारत सरकार की बनती है अब जब कोर्ट ने इनसे सवाल किया तो उन्होंने जवाबी हलफनामे में यह कह दिया किन विद्यार्थियों को समायोजित नहीं किया जा सकता यह सरासर नाइंसाफी है। पब्लिक पॉलीटिकल पार्टी मांग करती है कि केंद्र सरकार को चाहिए कि वो यूक्रेन से लौटे मेडिकल विद्यार्थीयों को भारत में शिक्षा देने की व्यवस्था करे ताकि इनका भविष्य खराब न हो।
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