नई दिल्ली।
लोकतंत्र के महापर्व यानि चुनाव को पूर्ण होने में
राजनीतिक दलों को मिलने वाले चंदे और चुनावों में होने वाले खर्च की बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका है। इसलिए इसमें पूरी तरह से पारदर्शिता बरती जानी चाहिए अपने इस विचार और मांग को पब्लिक पॉलीटिकल पार्टी ने फिर दोहराया है। आज देश में अनेक लोग इस बात के पक्षधर हैं कि जिस तरह मतदाताओं को अपने प्रतिनिधि के बारे में जानने का अधिकार है उसी तरह उसके दल को मिलने वाले चंदे के बारे में भी जानकारी मिलनी चाहिए कि वह कहां से आया, किसने कितना चंदा दिया, यानि चंदा प्राप्ति के स्रोतों के साथ साथ चुनाव में खर्च का भी पूरा ब्योरा दिया जाए। मगर कोई भी दल इस पारदर्शिता या इसके पक्ष में नहीं दिखता। प्रायः सभी दल अपने चंदे को गोपनीय रखते हैं। चुनावी बांड की व्यवस्था करते समय आशा जगी थी कि पार्टियों को चंदे के रूप में देकर काले धन को छिपाने की गतिविधियों पर रोक लगेगी, मगर उससे भी यह उद्देश्य पूरा नहीं हो पाया। कोई भी बैंक चंदा देने वाले की पहचान उजागर नहीं कर सकता, इस तरह चंदे की पारदर्शिता तो दूर राजनीतिक दलों को मिलने वाले चंदे की मात्रा में भी बहुत अधिक अंतर आया है। अब निर्वाचन आयोग इस पर ध्यान ला कर चंदा उगाही की प्रक्रिया को और पारदर्शी बनाना चाहता है। बताया जा रहा है कि उसने विधि मंत्रालय को पत्र लिखकर सुझाव दिया है कि नकद चंदे की राशि ₹20000 से घटाकर ₹2000 कर दी जानी चाहिए और चंदे के रूप में मिली नकदी कुल चंदे के 20% या बीस करोड़ रुपए से अधिक न हो। उसका कहना है कि केंद्र सरकार काले धन को लेकर कड़ा रुख रखने की बात कहती है इसीलिए उसे इस सुझाव को मान लेने में कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए। ज्ञात रहे कि जब जब जहां जहां चुनाव होते हैं बहुत सारे लोग काले धन को सफेद करने के लिए राजनीतिक दलों को चंदे के रूप में धन दे देते हैं और काले धन के प्रभाव को फैलने पर रोक नहीं लग पाती। और वर्ष दर वर्ष चुनाव खर्च में अत्यधिक बढ़ोतरी हुई है। उसे देखते हुए यह अनुमान लगाया जा सकता है कि किस तरह नकदी के रूप में काला धन प्रयोग किया जाता है। प्रत्याशियों के लिए चुनाव आयोग की ओर से चुनाव खर्च की सीमा तय है लेकिन निर्धारित सीमा के भीतर शायद ही कोई बड़ी राजनीतिक पार्टी का प्रत्याशी पैसा खर्च करता हो। अब तो मतदाताओं को रिझाने के लिए तरह-तरह के महंगे उपहार, नकदी, आदि भी बांटे जाते हैं। महंगी प्रचार सामग्री, विज्ञापनों की भरमार आदि पर अत्यधिक पैसा बहाया जाता है जो कि निर्धारित सीमा से कई गुना अधिक होता है। निर्वाचन आयोग इस पर अंकुश लगाने के लिए अनेक अवसरों पर कड़े निर्देश जारी कर चुका है और ऐसे प्रयास भी करता है मगर अब तक एक भी ऐसा प्रत्याशी नहीं मिला जो इस पैमाने पर खरा उतरा हो।
पब्लिक पॉलीटिकल पार्टी चुनाव में चंदा प्राप्ति और ख़र्च करने की पारदर्शिता और सत्यता की समर्थक है।
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