नई दिल्ली।
सवर्ण समाज की अपनी पार्टी पब्लिक पॉलीटिकल पार्टी ने सरकार के इस कथन को ग़लत बताया है कि चुनावी बॉन्ड पारदर्शिता का प्रतीक है। पार्टी प्रवक्ता के अनुसार सरकार इस मामले में लीपापोती कर रही है। आपको बता दें कि विभिन्न राजनीतिक दलों को चुनावी बॉन्ड के माध्यम से मिलने वाले चंदे पर रोक लगाने की मांग वाली याचिका पर शुक्रवार को सुनवाई हुई। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बीआर गवई और बीवी नागरत्ना की पीठ के समक्ष केंद्र सरकार ने चुनावी बॉन्ड योजना का समर्थन करते हुए कहा कि यह योजना पॉलिटिकल फंडिंग का पारदर्शी तरीका है वहीं याचिकाकर्ता ने जल्द सुनवाई की मांग की। जिस पर कोर्ट ने 6 दिसंबर को सुनवाई की तारीख तय की है। एडीआर और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने याचिका दायर कर राजनीतिक दलों को चुनावी बॉन्ड के माध्यम से प्राप्त होने वाले चंदे पर रोक लगाने की मांग की है। तर्क है कि इस योजना से चंदे के स्त्रोत का पता नहीं लगता, इसलिए इस पर रोक लगाई जानी चाहिए। केंद्र सरकार की ओर से सॉलीसीटर जनरल तुषार मेहता ने जवाब दायर करते हुए कहा कि चुनावी बॉन्ड योजना के काले धन पर रोक लगाकर पारदर्शिता कायम की है। इस पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए पब्लिक पॉलीटिकल पार्टी ने कहा है कि चुनावी बॉन्ड, पारदर्शिता का एक ड्रामा है। इसमें चंदा देने वाले का पता नहीं लगता, किसने चंदा दिया, कितना चंदा दिया, जबकि चेक से या बैंक द्वारा दिए गए चंदे में जिसने 20,000 से ज्यादा का चंदा दिया हो उसका पैन नंबर देना पड़ता है, चुनावी बॉन्ड में ऐसा कोई भी नियम नहीं है। इसलिए ये पारदर्शिता का ड्रामा है और केंद्र सरकार इस पर लीपापोती कर रही है।
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