
नई दिल्ली।
बिहार में शराबबंदी के मामले पर घिरे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एक बार फिर विधानसभा में निशाने पर आ गए हैं। विपक्ष के नेता विजय कुमार सिन्हा ने छपरा में ज़हरीली शराब से हुई मौतों को लेकर शराबबंदी पर सवाल उठाया तो नीतीश बौखला गए। बीजेपी विधायकों को हंगामा करते देख उन्हें गुस्सा आ गया और उन्होंने विधायकों को खूब खरीखोटी सुना दी। विधानसभा में जो कुछ भी हुआ, वो नया नहीं था, पहले भी कई बार नीतीश कुमार ऐसे ही अपना आपा खो बैठे हैं। अक्टूबर 2017 की बात है, रोहतास ज़िले के दनवार गांव में ज़हरीली शराब पीने से पांच लोगों की मौत हो गई थी, सोन नदी किनारे देसी शराब निर्माण और उत्पाद पुलिस की अनदेखी का मामला सामने आया, आठ पुलिस अधिकारी सस्पेंड कर दिए गए, तत्कालीन डीआईजी, रोहतास डीएम और एसपी ने कार्रवाई का आश्वासन और मुआवजा देकर मामला शांत कराया था। बिहार में ज़हरीली शराब से मौत की घटनाएं एक-दो या चार नहीं हैं, बल्कि अक्सर ऐसी घटनाएं सामने आती रहती हैं, यह एक चक्र की तरह चलता रहता है, ज़हरीली शराब पीने से मौत पर बवाल, फिर शराबबंदी पर सवाल और इस पर नीतीश कुमार की बौखलाहट। सवाल ये है कि नीतीश कुमार को गुस्सा क्यों आता है,
कुछ साल पहले देखते हैं कि बिहार विधानसभा चुनाव 2015 का माहौल था, नीतीश कुमार और लालू प्रसाद एक मंच पर आए, महागठबंधन बनाया और जीत हासिल की। कुछ महीने बीते, नीतीश कुमार ने राज्य में शराबबंदी की घोषणा की, एक अप्रैल 2016 से देसी शराब की ब्रिकी पर पाबंदी लगाई गई थी, सवाल उठे कि केवल देसी रोकने से क्या होगा? 4 दिन नहीं बीते कि देसी-विदेशी हर शराब पर प्रतिबंध लगा दिया गया। इस तरह राज्य में पूर्ण शराबबंदी लागू कर दी गई।
शराबबंदी के फैसले के पीछे नीतीश कुमार ने जो कहानी बताई थी, उसमें भी एक महिला शामिल थी, नीतीश कुमार ने तब बताया था कि “कुछ दिन पहले एक कार्यक्रम के दौरान एक महिला ने बिहार में शराब की दुकानों को लेकर मुझसे शिकायत की थी कि शराब पीकर लोग घरों में मारपीट और सड़क पर गुंडागर्दी करते हैं, गरीब तबके के लोग ज़रूरत के पैसे शराब में उड़ा देते हैं.” नीतीश कुमार ने उस महिला को आश्वस्त किया था कि वो बिहार में शराबबंदी लागू करेंगे और उन्होंने लागू की भी। मगर शराब बिकती रही लोग मरते रहे।
नवंबर 2021में गोपालगंज में शराब पीने से 40 लोगों की मौत हो गई। ज़हरीली शराब से मौत होने की घटनाएं अक्सर होती रहती हैं। हर बार शराबबंदी पर बवाल होता है और हर बार नीतीश के बयान में कड़ी कार्रवाई, कड़ी मॉनिटरिंग और कड़े निर्णय जैसी बातें आती हैं। लेकिन नतीजा शून्य। ऐसे में विरोधियों का सवाल उठाना लाज़िमी है। लेकिन नीतीश कुमार को बौखलाने की बजाय मॉनिटरिंग और कानून व्यवस्था कड़ी करने पर कार्यवाही करनी चाहिए।
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