
ओबीसी के वर्गीकरण के लिए गठित जस्टिस रोहणी आयोग अब अपने और विस्तार के पक्ष में नहीं ।
नई दिल्ली।
अब तक लगभग 14 बार विस्तार पाने के बाद बस अब जस्टिस रोहणी आयोग देना चाहता है अपनी रिपोर्ट, इसलिए वह अब अपने और विस्तार के पक्ष में नहीं है। अन्य पिछड़ा वर्ग ओबीसी को आगे बढ़ाने के लिए उन्हें मिलने वाले आरक्षण का वर्गीकरण करने के लिए गठित जस्टिस रोहणी आयोग अब अपनी रिपोर्ट पेश करना चाहता है। आयोग का मानना है कि जितना संभव था वह काम उन्होंने कर दिया है। अब इसे लागू करने का फैसला केंद्र को करना है। जल्दी वह केंद्र को अपनी रिपोर्ट भी देने की तैयारी में है। माना जा रहा है कि वह 31 जुलाई तक के अपने कार्यकाल के ख़त्म होने से पहले ही रिपोर्ट दे सकता है। बताया जाता है कि इस बीच आयोग ने ओबीसी आरक्षण लागू होने के बाद से अब तक केंद्रीय स्तर पर इन जातियों को मिले आरक्षण का पूरा ब्यौरा जुटा लिया है जिसमें आयोग ने यह पाया था कि ओबीसी आरक्षण का लाभ उनकी सिर्फ़ कुछ ही जातियों को मिला है। केंद्रीय सूची में वैसे तो ओबीसी की करीब 3000 जातियां शामिल हैं लेकिन जबकि पिछले वर्षों में आरक्षण का सबसे ज्यादा लाभ इनकी लगभग 100 जातियों ने ही लिया है। यह बात अलग है कि इनकी संख्या भी ओबीसी जातियों के बीच सबसे अधिक है। आयोग ने यह आंकड़े केंद्रीय उच्च शिक्षण संस्थानों में मिले दाखिले और केंद्र सरकार के विभाग और संगठनों में मिली नौकरियों के आधार पर तैयार किए हैं। आयोग ने इस दौरान डेढ़ हज़ार से ज़्यादा ऐसी ओबीसी जातियों को भी चिन्हित किया है। आरक्षण की पात्रता होने के बाद भी अब तक जिन्हें इसका कोई लाभ नहीं मिला है। सूत्रों की मानें तो आयोग ने इस बीच ओबीसी आरक्षण के वर्गीकरण को लेकर जो फार्मूला तैयार किया है, वह कर्नाटक सहित कई राज्यों में पहले प्रचलित वर्गीकरण के जैसा ही है। ओबीसी आरक्षण की चार से पांच कैटेगरी प्रस्तावित की गई हैं। ज्ञात रहे कि आयोग का गठन अक्टूबर 2017 में किया गया था उसे 12 सप्ताह के भीतर ही रिपोर्ट देनी थी लेकिन धीरे-धीरे आयोग का काम बढ़ता गया हाथ ही उसे लगातार विस्तार भी मिलने लगा, ऐसे में उसे अब तक लगभग 14 बार विस्तार मिल चुका है अंतिम बार उसे 31 जनवरी 2023 में विस्तार दिया गया था इसके बाद उसे 31 जुलाई तक कार्य पूरा करने के लिए कहा गया था। और लगता है कि अब उसके कार्यकाल की बढ़ोतरी पर विराम लग जाएगा।
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