जब देश में अवसर की समानता ही नहीं तो फ़िर समान नागरिक संहिता भी अर्थहीन है :- लोकेश शीतांशु श्रीवास्तव,

भारत देश हमेशा से विभिन्नताओं वाला देश रहा है यहां बार बार समानता का मुद्दा विभिन्न तरीकों से उठाया जाता है। और उसकी हिमायत भी की जाती है। लेकिन देखने वाली सच्चाई ये है कि जिस देश में अवसर की समानता न हो, भिन्न भिन्न आरक्षण हों,वहां समान नागरिक संहिता का कोई अर्थ नहीं है।
देश में जहां तहां देखा जा सकता है कि शिक्षा से लेकर रोज़गार तक,भर्ती से लेकर स्वास्थ्य क्षेत्र तक में सबको समान अवसर और समान नियम कानूनों को उपलब्ध नहीं कराया जाता, और वर्तमान सरकारें सभी को समान अवसर उपलब्ध कराने में असमर्थ रहीं हैं। समाज,देश और लोकतंत्र के मूलमंत्र सभी को समान अवसर को ठीक से लागू कर पाने में सरकारें असफल हैं लेकिन उसके बाद भी समान नागरिक संहिता का ढिंढोरा ख़ूब पीटा जा रहा है। कहा जा रहा है कि ये सभी धर्मों के लोगों के लिए व्यक्तिगत कानूनों को एक समान संहिता रखने का विचार है। जबकि सभी जानते हैं कि वर्तमान में भारत के व्यक्तिगत कानून काफ़ी जटिल और विविध हैं, प्रत्येक धर्म अपने विशिष्ट नियमों का पालन करता है। ऐसे में समान नागरिक संहिता का मुद्दा राजनीति नहीं तो और क्या है -?
कहा जा रहा है कि अनुच्छेद 25 से 28 के बीच हर व्यक्ति को धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार मिला हुआ है। इसलिए हर धर्म के लोगों पर एक समान पर्सनल लॉ थोपना संविधान के साथ खिलवाड़ करना है। मुस्लिम वर्ग इसे अपने धार्मिक और संवैधानिक मामलों में दखल मानते हैं। उधर हिंदू और सनातनी धर्म के लोगों के अपने अपने संस्कार और परम्पराएं हैं। और सभी धार्मिक मान्यताओं का पालन करना अपना धर्म और कर्तव्य समझते हैं। ऐसे में समान नागरिक संहिता को लाने की बात करना इसलिए भी उचित नहीं है कि जिन विषयों पर देश और समाज में समानता और बराबरी होनी चाहिए वह ही स्थापित नहीं हो पाई है। शिक्षा और रोज़गार तक में सभी के लिए समान अवसर मौजूद नहीं हैं। विभिन्न कोटा सिस्टम और आरक्षण ने पूरी व्यवस्था को छिन्न-भिन्न करके रखा हुआ है। क्या देश में सभी को रोज़गार और शिक्षा के समान अवसर नहीं मिलने चाहिएं। क्या स्वास्थ्य और रक्षा सुरक्षा जैसे क्षेत्रों में आरक्षण होना चाहिए। आज देश में किसी को दोयम दर्जे का नागरिक बना दिया गया तो किसी को मूल निवासी बना दिया गया है। ये दोहरे मापदंड ख़ूब चल रहे हैं इन पर किसी का ध्यान नहीं है। केवल और केवल राजनीति के लिए उल्टे सीधे मामले खड़े करने के प्रयास किए जाते हैं। मैं कहना चाहता हूं कि अगर वास्तव में भाजपा सरकार समान नागरिक संहिता लाना चाहती है तो पहले उसे अवसर की समानता का सिद्धांत लागू करना चाहिए और किसी भी प्रकार के आरक्षण को हटाना चाहिए। पब्लिक पोलिटिकल पार्टी मानती है कि अगर सभी को समान अवसर नहीं दिए जा सकते तो समान नागरिक संहिता भी नहीं बनाई जा सकती। पहले समान अवसर उपलब्ध कराओ, आरक्षण हटाओ और फ़िर समान नागरिक संहिता की बात करो।

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