नई दिल्ली।
अधिसूचित वन भूमि पर निवास और क़ब्ज़े के दावे के मामले में सुप्रीम कोर्ट के महत्वपूर्ण फैसले का पब्लिक पोलिटिकल पार्टी ने स्वागत किया है। पार्टी कार्यालय से जारी बयान में राष्ट्रीय अध्यक्षा श्रीमती दीपमाला श्रीवास्तव के संबंध से कहा है कि सुप्रीम कोर्ट ने जो अपने फैसले में कहा है कि अधिसूचित वन भूमि पर कब्ज़ा और निवास का दावा सिर्फ आदिवासी समुदाय या मान्यता प्राप्त समुदायों एससी – एसटी अथवा पिछड़ी जाति तक ही सीमित नहीं है बल्कि हर उस व्यक्ति से है जिसका दावा वैध है।
राष्ट्रीय अध्यक्षा ने कहा कि कोर्ट ने अपने वर्षों पुराने वनवासी सेवा आश्रम मामले में दिए गए फै़सले को स्पष्ट करते हुए कहा है कि यदि इस फैसले की संकीर्ण व्याख्या कर लाभ को कुछ निश्चिंत मान्यता प्राप्त वन समुदाय तक सीमित किया जाता है तो इसमें कुछ समुदायों को नुक्सान होगा। अदालत ने कहा है कि इस पर ध्यान दिया जाना चाहिए कि आदिवासी मामलों में दिया गया फैसला केवल सक्षम अधिकारी द्वारा सुनवाई का अधिकार देता है अगर ऐसा अधिकारी किन्हीं दावों को खारिज कर देता है तो वह दावा उस ज़मीन के लिए अस्तित्व में नहीं रहता। वन अधिनियम की धारा 4 के तहत अधिसूचित किसी भी भूमि पर कब्जा प्राप्त करने का अधिकार केवल आदिवासी समुदायों और अन्य वनवासी समुदाय तक ही सीमित नहीं है बल्कि अधिकार निवास,मूल कब्जे की तारीख़ आदि के प्रमाण पर भी आधारित है। यह भूमि पर निवास का अधिकार केवल कुछ समुदायों तक ही सीमित नहीं है तो फिर दावों पर सुनवाई का अधिकार सीमित कैसे हो सकता है-? सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला दूरगामी परिणामों वाला है। न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी व न्यायमूर्ति अहसानुददीन अमानुल्लाह की पीठ में पांच जुलाई को उत्तर प्रदेश के सोनभद्र में अधिसूचित वन भूमि पर कब्ज़े और दावे से संबंधी हरि प्रकाश शुक्ला की याचिका स्वीकार करते हुए यह फैसला दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट का चार फरवरी 2013 का आदेश रद्द कर दिया है। कोर्ट ने कहा है कि यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि वन समुदायों में केवल मान्यता प्राप्त आदिवासी व अन्य पिछड़े, समुदायों के लोग शामिल नहीं है। बल्कि उस भूमि पर रहने वाली अन्य समूह भी शामिल है मामले में उत्तर प्रदेश सरकार ने कहा था कि वन भूमि पर कब्जा अधिकार का दावा करने वाला व्यक्ति एससी-एसटी या ओबीसी वर्ग का नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने वनवासी आश्रम मामले में वन भूमि पर दावे का अधिकार एससी एसटी ओबीसी को दिया है। याचिकाकर्ता हरि प्रकाश शुक्ला उस फैसले को आधार बनाते हुए ज़मीन पर दावा नहीं कर सकता।
ज्ञात रहे कि इस मामले में याचिकाकर्ता हरि प्रकाश शुक्ला का कहना था कि वह इस अधिसूचित वन भूमि के भूमिदार हैं और ज़मीन उनके कब्जे में है। याचिकाकर्ता ने वनवासी सेवा आश्रम फैसले को आधार बनाकर फॉरेस्ट सेटेलमेंट अधिकारी के समक्ष ज़मीन पर दावा दाखिल किया। सेंटलमेंट अधिकारी ने याचिकाकर्ता के दावे को स्वीकार कर लिया। सरकार ने आदेश के ख़िलाफ़ अपील की लेकिन एडीजी ने ख़ारिज कर दी इसके बाद याचिकाकर्ता ने आदेश लागू करने की अर्जी दी जिसे एडीजे ने स्वीकार कर लिया। वन विभाग ने पुनर्विचार याचिका डाली लेकिन वह भी खारिज हो गई इसके बाद पर प्रदेश सरकार के वन विभाग ने हाई कोर्ट में रिट याचिका दाखिल की और हाईकोर्ट ने 4 फरवरी 2013 को रिट याचिका स्वीकार कर ली जिसके ख़िलाफ़ याचिकाकर्ता सुप्रीम कोर्ट आया था।

#PPP

#PublicPoliticalParty

#LokeshShitanshuShrivastava

#DeepmalaSrivastva

#supremecourt

#AhsanuddinAmanullah

#Highcourt

#landgrab

#Sonbhadra

#VanvasiAshram

Leave a comment