कोर्ट का ये कहना कि चींटी मारने के लिए हथौड़े का उपयोग ठीक नहीं, बिल्कुल उचित और न्यायसंगत है : श्रीमती दीपमाला श्रीवास्तव
नई दिल्ली।
सोशल मीडिया पर आजकल देश विदेश की ख़बरों और लोगों के विचारों का बोलबाला है ऐसे में पिछले काफ़ी दिनों से सरकार सोशल मीडिया पर अपना बड़ा शिकंजा कसने में लगी हुई है। सरकार ने भ्रामक और बेतुकी ख़बरों का कथित आधार बनाकर अधिक शक्ति थोपने की कोशिश की है जिसे मुंबई हाईकोर्ट ने ग़लत करार दिया और कहा है कि भ्रामक खबरों पर आईटी नियमों में संशोधन पर इतनी शक्ति की ज़रूरत क्या है। मुंबई हाईकोर्ट के इस कदम का पब्लिक पोलिटिकल पार्टी ने स्वागत किया है और कहा है कि उसका ये कदम उचित और न्यायसंगत है।
पार्टी अध्यक्षा श्रीमती दीपमाला श्रीवास्तव ने बताया कि सरकार सूचना प्रौद्योगिकी के आईटी नियमों को लेकर अधिक से अधिक सख़्ती बरतना चाहती है और सच कहा जाए तो वह प्रतिबंध ही लगाना चाहती है। जो अनुचित है। बस यही बात मुंबई हाईकोर्ट ने कही है। जो प्रशंसनीय और स्वागतयोग्य है।
ज्ञात रहे कि मुंबई हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि सोशल मीडिया पर फर्ज़ी सामग्री को लेकर सरकार की तरफ से हाल ही में सूचना प्रौद्योगिकी आईटी नियमों में किए गए संशोधन अतिवादी हैं। कोर्ट ने लोकहित में सवाल उठाया है कि आख़िर नियमों में इतनी शक्ति की आवश्यकता क्या है-? कोर्ट ने यह भी मिसाल दी कि चींटी मारने के लिए हथौड़े का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। जस्टिस गौतम पटेल और जस्टिस नीला गोखले की खंडपीठ ने कहा है कि आईटी नियमों में संशोधन का कोई औचित्य नज़र नहीं आता। और सबसे बड़ी बात मुंबई हाईकोर्ट ने ये कही है कि आख़िर संशोधित आईटी नियमों में यह निर्धारित करने का क्या आधार बनाया गया है कि कौन सी सामग्री गलत या भ्रामक है-? जस्टिस पटेल ने कहा है कि यह समझना बहुत कठिन हो रहा है। उन्होंने कहा कि मैंने केंद्र के हलफ़नामे को दो बार देखा, लेकिन समझ में ही नहीं आ रहा कि सही गलत की सीमा तय करने का आधार क्या है-? उन्होंने कहा कि यह बात भी समझ से परे है कि सरकार के एक प्राधिकारी को यह तय करने की पूर्ण शक्ति दे दी गई है कि गलत या भ्रामक क्या है-? अदालत ने लोकहित में कहा कि लोकतांत्रिक प्रक्रिया में सरकार की भी उतनी ही भागीदारी है जितना किसी नागरिक की है,इसलिए किसी भी नागरिक को सवाल करने या जवाब मांगने का मौलिक अधिकार है और सरकार जवाब देने के लिए बाध्य है। कोर्ट ने सवाल किया कि आख़िर संशोधित नियमों के तहत स्थापित फैक्ट चेकिंग यूनिट (एफसीयू) की जांच कौन करेगा -?जस्टिस पटेल ने कहा कि ऐसी धारणा है कि एफसीयू की तरफ से जो भी कहा जाएगा उसे ही निर्विवाद रूप से अंतिम सत्य माना जाएगा।
इस संबंध में ज्ञात रहे कि हाईकोर्ट, सरकार के आईटी संशोधित नियमों को चुनौती देने वाली याचिका पर दैनिक आधार पर सुनवाई कर रहा है। यह याचिका स्टैंडअप कॉमेडियन कुणाल कामरा, एडिटर्स गिल्ड ऑफ़ इंडिया और एसोसिएशन ऑफ इंडियन मैगजीन्स की तरफ से दायर की गई।
एसोसिएशन ऑफ इंडियन मैगज़ीन की ओर से पेश वकील गौतम भाटिया ने नियमों के ख़िलाफ़ तर्क दिया कि सोशल मीडिया पर फर्ज़ी सामग्री पर नज़र रखने के लिए कम प्रतिबंधात्मक विकल्प उपलब्ध हैं। तो सरकार और अधिक अंकुश लगाना चाहती है।
पब्लिक पोलिटिकल पार्टी ने सोशल मीडिया पर कड़े अंकुश लगाने को अलोकतांत्रिक और स्वतंत्रता का हनन बताया और मुंबई हाईकोर्ट द्वारा सरकार के आईटी नियमों पर अधिक शिकंजा कसने के विरुद्ध मुंबई हाईकोर्ट के द्रष्टिकोण का हार्दिक स्वागत किया। पार्टी अध्यक्षा श्रीमती दीपमाला श्रीवास्तव ने कहा कि मुंबई हाईकोर्ट का ये कहना कि चींटी मारने के लिए हथौड़े का उपयोग ठीक नहीं, बिल्कुल उचित और न्यायसंगत है।
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