
नई दिल्ली।
राष्ट्रहित और सवर्ण समाज की पब्लिक पॉलीटिकल पार्टी ने सुप्रीम कोर्ट के उस फ़ैसले की प्रशंसा और समर्थन किया है जिसमें उसने केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के ख़िलाफ़ सख़्त टिप्पणी करते हुए कहा है कि वो उन राज्यों में कार्रवाई नहीं कर रही, जहां जहां उसकी भाजपाई सरकार है। पब्लिक पोलिटिकल पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्षा श्रीमती दीपमाला श्रीवास्तव ने सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का समर्थन करते हुए उसे उचित और न्यायसंगत बताया है।
पार्टी अध्यक्षा ने बताया कि न्यायालय ने भाजपा सरकार के पक्षपात और दोगली नीति को उजागर करके उस पर सख़्त टिप्पणी की है। शीर्ष अदालत ने सवाल किया कि नागालैंड में स्थानीय निकाय चुनाव में महिलाओं के लिए आरक्षण क्यों लागू नहीं किया गया।
ज्ञात रहे कि 25 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट में एक अवमानना याचिका पर सुनवाई हुई जिसमें नागालैंड में महिलाओं के लिए 33% आरक्षण के साथ स्थानीय निकाय चुनाव कराने का मुद्दा उठाया गया। सुनवाई के दौरान कोर्ट में इस मामले पर केंद्र सरकार का रुख पूछा गया, जवाब में केंद्र की ओर से पेश हुए एडिशनल सॉलिसिटर जनरल (सुप्रीम कोर्ट) केएम नटराज ने जवाब दिया कि ये आरक्षण नागालैंड पर लागू होता है। इस पर जस्टिस संजय किशन कौल ने पूछा कि फिर इसे (आरक्षण) लागू क्यों नहीं किया गया? आप लोग क्या कर रहे हैं? राज्य में आपकी सरकार है। आप दूसरी राज्य सरकारों के ख़िलाफ़ तो कड़ा रुख अपनाते हैं जो आपके प्रति ज़िम्मेदार नहीं हैं, लेकिन आप अपनी राज्य सरकारों के ख़िलाफ़ कुछ नहीं करते। जस्टिस कौल ने पूछा कि आरक्षण लागू कराने के लिए केंद्र सरकार क्या करेगी. इसके जवाब में सरकार की ओर से पेश हुए एएसजी ने कहा कि राज्य ने कुछ अभ्यास शुरू किए हैं. वे कुछ कानून बनाना चाहते हैं, पूर्वोत्तर में जो स्थिति है, उसे देखते हुए समय दिया जाए, इस पर जस्टिस कौल ने जवाब दिया कि मौजूदा मुद्दा अलग है, उन्होंने कहा कि मौजूदा मुद्दा ये है कि क्या समाज के आधे हिस्से को प्रशासनिक प्रक्रिया में एक तिहाई भागीदारी मिल सकती है। न्यायाधीश ने पूछा कि क्या महिलाओं के लिए आरक्षण के ख़िलाफ़ कोई प्रावधान है? महिलाओं की भागीदारी का विरोध क्यों जबकि जीवन के सभी क्षेत्रों में महिलाएं समान रूप से शामिल हैं? इसके जवाब में नागालैंड के एडवोकेट जनरल ने बताया कि कई महिला संगठनों ने कहा है कि उन्हें आरक्षण नहीं चाहिए और ये कोई छोटी संख्या नहीं है. ये पढ़ी-लिखी महिलाएं हैं। वहीं जस्टिस कौल ने कहा कि यथास्थिति में बदलाव का हमेशा विरोध होता है। लेकिन, किसी को यथास्थिति बदलने की ज़िम्मेदारी लेनी होगी, सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि केंद्र सरकार इस मुद्दे से अपना हाथ नहीं झाड़ सकती।
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