नई दिल्ली।
पिछड़ों के आरक्षण के वर्गीकरण को लेकर रोहिणी आयोग की रिपोर्ट और OBC आरक्षण को तीन भागों में विभक्त करने को लेकर देशभर में चर्चाएं और राजनीति बढ़ गई है। क्योंकि रोहिणी आयोग की रिपोर्ट सरकार को सौंपे जाने के बाद केंद्र सरकार जल्द ही इस पर फैसला लेगी। माना जा रहा है कि इससे पिछड़ी जातियों के 27 फीसदी आरक्षण को तीन हिस्सों में बांटने का रास्ता साफ हो जाएगा। और कहा जा रहा है कि इससे पिछड़ा वर्ग की करीब डेढ़ हज़ार जातियों को उनका वाजिब हक़ मिलेगा। अभी तक ओबीसी आरक्षण में बंटवारे को लेकर सड़क से लेकर संसद तक राजनीति होती रही है। और कई नेता 27 फीसदी आरक्षण को तीन हिस्सों में बांटते हुए पिछड़ी जातियों को 7 फीसदी, अति पिछड़ी जातियों को 9 तथा अत्यंत पिछड़ी जातियों को 11 फीसदी आरक्षण देने की मांग करते रहे हैं। अगर रोहिणी आयोग की रिपोर्ट की बात करें तो सिर्फ़ 10 ओबीसी जातियां करीब 25 फीसदी आरक्षण का लाभ लेतीं हैं। और प्रतिशत में आंकड़ा निकालिएगा तो पता चलेगा कि 25 प्रतिशत ओबीसी जातियां 97 फीसदी पिछड़ों के हक़ पर काबिज हैं। 2633 में 983 यानी 37 प्रतिशत पिछड़ी जातियों को आज तक आरक्षण का कोई लाभ ही नहीं मिला है।
केंद्र सरकार ने ओबीसी के उप-वर्गीकरण पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए न्यायमूर्ति रोहिणी आयोग का कार्यकाल 31 जनवरी, 2023 तक बढ़ा दिया है। यह लगातार 13वां विस्तार है. यह विस्तार कोविड-19 संकट के मद्देनज़र दिया गया था, और आयोग ने रिपोर्ट प्रस्तुत करने से पहले हितधारकों और राज्यों के साथ परामर्श का भी अनुरोध किया है। इसने ओबीसी की वर्तमान केंद्रीय सूची में दोहराव, अस्पष्टता, विसंगतियों और त्रुटियों की भी सूचना दी है। ज्ञात रहे कि आयोग का गठन भारत के राष्ट्रपति की मंजूरी के साथ 2 अक्टूबर 2017 को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 340 के तहत किया गया। आयोग का नेतृत्व दिल्ली उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश जी. रोहिणी कर रहे हैं।
1979 में मंडल आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, केंद्र सरकार के संस्थानों और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में 27% सीटें ओबीसी के लिए आरक्षित थीं । ओबीसी के भीतर उपवर्गीकरण का प्रस्ताव इस धारणा पर किया गया है कि आरक्षण का एक बड़ा हिस्सा जाति के भीतर प्रमुख वर्गों पर केंद्रित है। ओबीसी की केंद्रीय सूची में शामिल 2,666 समुदायों में से केवल कुछ को ही आरक्षण का लाभ प्राप्त है। इसलिए, ओबीसी समुदाय के भीतर आरक्षण का तर्कसंगत विभाजन सुनिश्चित करने के लिए समिति का गठन किया गया।
केंद्र सरकार ने ओबीसी के उप-वर्गीकरण पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए न्यायमूर्ति रोहिणी आयोग का कार्यकाल 31 जनवरी, 2023 तक बढ़ाया। यह लगातार 13वां विस्तार था। यह विस्तार कोविड-19 संकट के मद्देनज़र दिया गया था, और आयोग ने रिपोर्ट प्रस्तुत करने से पहले हितधारकों और राज्यों के साथ परामर्श का भी अनुरोध किया। इसने ओबीसी की वर्तमान केंद्रीय सूची में दोहराव, अस्पष्टता, विसंगतियों और त्रुटियों की भी सूचना दी है।
ओबीसी को 27 प्रतिशत मिलने वाले आरक्षण को तीन भागों में विभक्त करने को लेकर इसका स्वागत और इस पर राजनीति गर्मा गई है। बिहार के विधान पार्षद प्रो गुलाम गौस ने मंडल कमीशन के तहत ओबीसी को 27 प्रतिशत मिलने वाले आरक्षण को तीन भागों में विभक्त करने के प्रस्ताव का स्वागत किया है। और प्रो ग़ौस ने रोहिणी आयोग से मांग की है कि इस वर्गीकरण में पिछड़े मुसलमानों का एक अलग समूह सृजित किया जाए। उनका कहना है कि मंडल कमीशन की सूची में 82 पेशेवर बिरादरियां पसमांदा मुसलमान हैं जो देश में कुल मुस्लिम आबादी की लगभग 85 प्रतिशत से 90 प्रतिशत हैं। ये पसमांदा बिरादरियां ज़िन्दगी के दौर में बहुत पीछे छूट गई हैं। ये आरक्षण का लाभ 2 प्रतिशत भी नहीं उठा पातीं हैं।
इसी मुद्दे पर मई 2019 में एनडीए से नाता तोड़ने वाले और अब फिर उससे नाता जोड़ लेने वाले राजभर अब कह रहे हैं कि एनडीए ही आरक्षण के लाभ से वंचित ओबीसी में शामिल कई उप जातियों को इसका लाभ दिलाएगी। उनका कहना है कि पिछड़ों के लिए 27 फीसदी आरक्षण होने के बाद भी ओबीसी में शमिल कई जातियो को इसका लाभ नहीं मिल पा रहा है। कांग्रेस, बसपा और सपा सरकार की गलत नीतियों से कुछ ही जातियों को लाभ मिल रहा था लेकिन अब एनडीए सरकार इस विसंगति को दूर करके अति पिछड़ों को आरक्षण दिलाएगी। और बहुत जल्द ही अन्य पिछड़ा वर्ग की करीब डेढ़ हज़ार जातियों को उनका वाजिब हक़ मिलेगा

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