
ये बांड योजना एक तरह से भाजपा का चुनावी चंदा प्रोजेक्ट ही थी : श्रीमती दीपमाला श्रीवास्तव
नई दिल्ली।
देश की सबसे बड़ी अदालत यानि सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बांड योजना को असंवैधानिक मानते हुए इस पर रोक लगाने का आख़िर वही फ़ैसला सुनाया जिसको देश की पब्लिक पोलिटिकल पार्टी ने इन चुनावी बांड की योजना के शुरू होने पर ही कहा था। पब्लिक पोलिटिकल पार्टी ने कहा था कि यह सरकार की भ्रष्टाचार को योजना में बदलकर चंदा घोटाला करने वाली स्कीम ही साबित होगा। और अब जब चुनावी बांड को जारी हुए करीब 5 साल होने जा रहे थे तब सुप्रीम कोर्ट ने इसे असंवैधानिक करार देते हुए इस पर तुरंत रोक लगा दी है।
पब्लिक पोलिटिकल पार्टी ने सुप्रीम कोर्ट के इस फ़ैसले का स्वागत किया है और कहा है कि
ये मुद्दा सिर्फ़ राजनीतिक फंडिंग का नहीं बल्कि भ्रष्टाचार का भी है जिसकी जांच पड़ताल होनी चाहिए। जिससे इस भाजपाई सरकार के भ्रष्टाचार की परतें खुल सकें।
पब्लिक पोलिटिकल पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्षा श्रीमती दीपमाला श्रीवास्तव ने कहा कि अभी भी लोगों को इसके बारे में बहुत कम जानकारी है कि इसमें कौन से वो लोग हैं जो चुनावी बांड के ज़रिए अपना पैसा चुनावी दलों को दे रहे थे असल में चुनावी बांड को राजनीतिक दलों को दिए जाने वाले नकद चंदे के विकल्प के रूप में इस तरह पेश किया गया कि इससे राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता बढ़ेगी हालांकि ये वर्तमान भाजपा का सरकारी फंडिंग प्रोजेक्ट बना।
चुनावी बॉण्ड प्रणाली को वर्ष 2017 में एक वित्त विधेयक के माध्यम से पेश किया गया था। इसे वर्ष 2018 में लागू किया गया। इलेक्टोरल बांड के जरिए अब तक 5851 करोड़ रुपये जुटाए जा चुके हैं। पिछले साल मई माह में 822 करोड़ रुपये के इलेक्टोरल बांड खरीदे गए। जनवरी से लेकर मई 2019 तक भारतीय स्टेट बैंक की विभिन्न शाखाओं के ज़रिए 4794 रुपये के बांड खरीदे गए। अब सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि सरकार योजना बंद करे। स्टेट बैंक चुनावी बांड बेचना बंद करे, ये चुनावी बांड योजना बंद की जाती है, इसकी पूरी जानकारी वर्ष 2019 स्टेट बैंक को अपनी वेबसाइट पर ज़ाहिर करनी होगी, ये वोटर का अधिकार है कि वो जाने कि चुनावी बांड में कहां से पैसा आया और किसने लगाया, इसकी जानकारी नहीं देना सूचना अधिकारों का भी उल्लंघन है।
पब्लिक पोलिटिकल पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्षा श्रीमती दीपमाला श्रीवास्तव ने बताया कि हमने शुरू में ही कहा था कि ये भाजपा सरकार का चुनावी चंदा लेने का एक प्रोजेक्ट ही साबित होगा और यही हुआ भी है पिछले कुछ सालों में सामने आई रिपोर्ट्स में ये पता चला कि इस राशि का सबसे बड़ा हिस्सा केंद्र में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी को ही मिला। चुनावी बॉन्ड्स की पारदर्शिता को लेकर सवाल पर सवाल खड़े थे और ये खुला आरोप लग रहा था कि ये योजना मनी लॉन्डरिंग या काले धन को सफ़ेद करने के लिए इस्तेमाल हो रही है। अब सुप्रीम कोर्ट ने इस पर रोक लगाई है जो प्रशंसनीय और स्वागतयोग्य है।
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